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Monday, June 14, 2010

कभी पंकज पचोरी और अलोक सांवल मेरे यूनीवेर्सिटी में आए थे ..................

ये बात उन दिनों की है जब मैं मास्टर ऑफ़ जर्नालिस्म के तीसरे सेमेस्टर में था ... हमारे यहाँ एक सेमीनार में पंकज और अलोक आये थे ...महिला ससक्तिकरण पर सेमीनार में , मैं तो सेमिनार में जाना नहीं चाहता था , लकिन पंकज को ही सुनने के लिए गया था , लेकिन सेमिनार में अलोक का ये कहा ...."जो लोग देखना चाहते है ..हम उन्हें वही देखते है" ये बात उन्होंने तब कही थी जब मेरे एक अनुज दोस्त ने उनसे ये पूछा था कि आप अपने यहाँ जो केंडी ( लडकियो की गन्दी फोटो छापते हो , उससे क्या मैसेज देना चाहते हो ) और पंकज ने हद ही कर दिया था , पंकज ने जिनको मैं अपना आदर्श मानता था , ने इस्टेज से ४५ मिनट तक बोला ....." मैं गुस्से में हू । इसलिए इतना कह रहा हू ...........................फ़िलहाल हम बनिए की नौकरी कर रहे है और अगर हम बिकने लायक खबर नहीं दे सकते तो हम बहर हो जायेंगे ..." माफ़ किजेयेगा पंकज जी मेरी नजर में आप उसी दिन बाहरहो गए थे भले ही आपने पत्रकारिता में कोए भी मुकाम हासिल किया हो ....... मुझे भी उस समय गुस्सा आया था ..और मैं इन सब बातो का जबाब पंकज और अलोक से कहना कहता था ... फिलहाल मैंने अपना विचार लिख कर अपने इंस्टिट्यूट के बोर्ड पर लगा दिया था ...अभी आप सभी के लिए पंकज और अलोक को मेरा जबाब मेरे ब्लॉग के माध्यम से ........................
एक विचारनिये मुद्दा है " महिला ससक्ति करण " । इस दुनिया की आधी आबादी महिलाओ की है । महिला मा होती है बहन होती है पत्नी होती है दोस्त होती है सरे रिश्ते महिलाओ के बिना संभव नहीं है फिर भी आज समाज में महिलाओ की स्थिति बड़ी ख़राब है । आज के समाज में महिलाओ ने ये सिद्ध कर दिया है , वो तमाम सरे कार्य जो पुरुष कर सकते है महिलाये भी कर सकती है और पुरुष से बेहतर कर सकती है , बात मैं पुरुष या नारी की योग्यता की नहीं कर रहा , बात मैं कर रहा हू , महिलाओ के सम्बन्ध में समाज की और मीडिया के लोगो के नजरिये की ........"क्या समाज का चस्मा पहन कर मीडिया के लोग महिलाओ को देखते है ? " जब महिला ससक्तिकरण की बात हो और कुछ मीडिया के जिम्मेदार लोग यह कहते मिले "जो दीखता है वो बिकता है " तो स्थिति और आधिक नाजुक हो जाती है । या फिर मीडिया के कुछ लोग ये कहते मिले "लोग जो देखना चाहते है हम उन्हें वही दिखा रहे है " ऐसे में ये तो स्पस्ट है ऐसे लोग नारी के देह की बात कर रहे होते है ।इनके इस सोच का स्तर इतना निम्न इसलिए होता है क्योकि ये समाज , व्यवस्था , बाजार , व पुरुषवाद के पीछे से इस बात को मंचो से सरे आम कह रहे है और इन्हें अपनी इस विकृत सोच पर जरा भी शर्म नहीं आती है । पुरानी मान्यताये टूटती है नई सामाजिक मान्यताये समाज में बनती भी रही है । ऐसे में मीडिया की नातिक जेम्मेदारी बनती है । की पग पग पर समाज का उचित दिशा निर्देशन करे , ना की अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाडे । मीडिया आज बाज़ार बाद के हत्थे चढ़ गयी है सच्चाई यही है और इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन मीडिया के लोग फिर भी अपना पल्ला समाज से नहीं झाड सकते मीडिया के लोगो को नेतिकता को ध्यान में रख कर समाज का ध्यान रखना है क्यूंकि हमारी भूमिका से समाज प्रभावित होता है एक रोज देश के एक प्रसिद्ध पत्रकार ने मुझसे कहा की "हम बनिए की नौकरी करते है , हम खबर बेचते है अगर बिकने लायक खबर नहीं ला सकते तो बहार कर दिए जायेंगे " मन में बड़ा गुस्सा आया , ये व्यक्ति तो अपनी पत्रकार जिम्मेदारियों से मुह मोड़ रहा है किन्तु बिडम्बना यही है , अधिकांश लोग पत्रकारिता में आज केवल अपनी नौकरी बजा रहे होते है, सही है आज पत्रकार बनिए की नौकरी करते है , पर देश व समाज के प्रति उनकी अहम् जिम्मेदारी होती है जिससे वो इंकार नहीं कर सकते है, ऐसा नहीं की नारी को समाज में स्थान दिलाने के कोई प्रयास नहीं हुए लेकिन ये प्रयास कितने न काफी रहे है , ये समाज में स्पस्ट दृष्टी गोचर है , जब मीडिया के लोग तमाम बहनों के के पीछे अपनी जिम्मे दारी से इंकार कर दे बनिए की नौकरी बता कर खुद बनियों जैसा कार्य करने लगे तो समाज को इन बनियों के हाथो बिकने से कौन रोक पाएगा ? क्या इन लोगो को ये नहीं सोचना चाहिये , इनके इस कृत से समाज कितना प्रभावित होता है परिवार के लोग एक साथ बैठ कर परदे के माध्यम से परोसी जा रही फहुहड़ता को कब तक झेल सकता है बच्चो पर ये क्या प्रभाव डालते है ? लेकिन बनिया तो केवल अपना लाभ देखता है , बनिए का नौकर क्योँ सोचने लगा समाज के बारे में , समाचारपत्रों की या चैनलों की कमाई में विगापनो का अहम् रोल होता है । जिसमे नारी के देह का अनावश्यक प्रयोग अंग प्रदर्सन होता है , पूछे जाने पर ऐसा क्यूं होता है । ऐसा जरूरी है मीडिया के लोगो की रोजी रोटी चलती है , लोग देखना कहते है ........क्या क्या जबाब देते है ऐसे बहनों के पीछे मीडिया के लोग अपना मुह छिपाते है लोग तो बहुत कुछ देकना कहते है बिना उचित अनुचित का हिसाब किये सभी कुछ दिखा देना उचित नहीं होगा , जब बिना उचित अनुचित का ध्यान रख कर चेनल टीआर पी के लिए कुछ भी दिखा देते है .....................................क्या ये सही है .........अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है .... बस अपनी जिम्मेदारियों को उठाने की देर है ............................... अब ये मीडिया के लोगो सोचना है , मीडिया के बनियों के हातू अपने को बेच नौकर बन सिर्फ अपनी नौकरी करनी है ...या फिर .......................सच्ची पत्रकारिता कर दुखी लोगो की कुछ मदत करनी है ............