पत्रकारिता के माएने बदल चुके है,ये बात अक्सर सुनने को मिलती है।जब कभी पत्रकारिता के महारथियों से आज की पत्रकारिता के विषय में पूछा जाता है।तो उनका यही जबाब होता है,कि पत्रकारिता में विज्ञापन,पैसे,बाजार का महत्व बढा है।किन्तु पत्रकारिता आज भी आम सरोकारों को लेकर चलती है।लेकिन सवाल ये है, कि क्या आज पत्रकारिता के माएने बदल चुके है?क्या वाकई पत्रकारिता के मूल्यों मे बदलाव हुआ है? नही साहब पत्रकारिता आज भी जन सरोकारों के साथ है। पत्रकरिता के ना तो मानक बदले है।और ना ही बदलेगें क्योंकि अगर पत्रकारिता के मानक बदल गए तो फिर वो पत्रकारिता नही रह जाएगी।ऐसा ज्यादातर मीडिया मठाधीष कहते मिलेगें,लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है।पत्रकारिता में बाजारबाद बढा है,दिखावा बढा है। आज पत्रकारिता जगत का परिवेष,मूल्य,आदर्श,और वातावरण सभी में अमूलचूक परिवर्तन हुए है। लोगो ने आज पत्रकारिता को अपने निहित स्वार्थो के लिए उपयोग करना शुरू कर दिया है।आज पत्रकारिता एक बडा बाजार है,उस बाजार ने तमाम पत्रकारिता के महारथियों का जमीर खरीद लिया है।वे वही बोलते,लिखते,सोचते व समझते मिलतें है,जो उन्हे बाजार दिखाता है।अध्ययन,स्वाध्याय से दूर ये पत्रकार क्या सोचेगें पत्रकारिता व उसके मानकों के बारे मे?आज अखबारों व चैनलों पर पूजीपतियों का कब्जा है,और वे अपनी पूंजी को बढानें के निहित स्वार्थो को लेकर पत्रकारिता का दुरूपयोग करते है। पत्रकारिता के धौस में ना जाने अपने कितने आर्थिक व अन्य मंसूबों की पूर्ति करते है। लेकिन कुछ और बडे प्रश्न है कि आज के समाचार पत्र व चैनल जो कुछ छाप रहें है या फिर प्रसारित कर रहें है क्या उसे पत्रकारिता कहा जा सकता है? पत्रकारिता से जुडें लोगों की स्थित हालात देखकर,क्षेत्रीय व स्थानीए पत्रकारिता की दुर्दशा देख कर क्या पत्रकारिता के बदले मायनों को क्या नही समझा जा सकता?
अगर ईमानदारी से यर्थाथ का चश्मा लगा कर देखने समझने का प्रयास किया जाए तो सभी कुछ आइने की तरह साफ है।आज की पत्रकारिता कोई समाज को दिशा देने चेताने वाली पत्रकारिता नही है।व्यवसायीकरण के दौर में एक अखबार दूसरे अखबार से, व एक चैनल दूसरे चैनलों से गलाकाट प्रतियोगिता कर रहा है।सर्कुलेशन,टी आर पी व विज्ञापन के लिए वे क्या कुछ नही करते।
सभी पत्रकार कमोबेस इन बातों को जानते समझते है,और सभी इन अखबारों व चैनलों के व्यवसायी मंसूबों को आम सरोकारों को नजर अन्दाज कर पोषित करते है।ज्यादातर समाचार पत्रों मे आधे से ज्यादा अखबार विज्ञप्तियों व विज्ञापनों से भरा मिलता है।व समाचारों की गुणवत्ता में कमी साफ दिखाई देती है। पेड न्यूज,कृपा राशि आदि के आंचल में कैसे और कौन सी न्यूज विश्वसनीए होगी। सोचने का विषय है,आज ना सिर्फ पूंजीपति ही बल्कि राजनेता भी अपने मंसूबों को पत्रकारिता के माध्यम से पोषित करते है।इन आकांछाओं की पूर्ति लिए चैनल मालिक,डेस्क इंचार्ज,संपादकों,रिर्पोटरों आदि को कृपा राशि का भुक्तान किया जाता है। आज की संवेदना विहीन पत्रकारिता से क्या किसी मानकों या मूल्यों की अपेछा की जा सकती है।जब संवेदना के विषयो को चटखारें लगा कर,सनसनी बना कर पेश करना आज के युग की पत्रकारिता है। और उस संवेदना विहीन खबर की जिम्मेदारी बाई लाइन या साइन आफ के लिए ही समाज,देश व पत्रकारिता किसी के मर्यादाओं को ना ध्यान रख कर लिया जाए। तो स्थित आम सरोकारों से दूर होती पत्रकारिता को स्पष्ट कर देती है।
Journalism is a river of challenge.where u never stop confronting the tough times ahead . In jornalist's life every day is a ACID test .....
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