आमजन के सपने और भ्रष्ट्राचार के खिलाफ मुहिम - रवि शंकर मौर्य( Date : 15-04-2011)
(रवि शंकर मौर्य /कोटा )
अन्ना हजारे के चेहरे मे लोगो को महात्मा गांधी की छवि नजर आने लगी है। और आनी भी चाहिए,क्योंकि आन्दोलन जिस करवट बैठा,वो खुद अन्ना हजारे ने भी नही सोचा था,अन्ना खुद भी इस बात को स्वीकार करतें है।अन्ना हजारे को जो जन समर्थन मिला वो सोचा ना गया था,इतना बडा आन्दोंलन इतने बडे पैमाने पर विरोध,वो भी आज के युवा वर्ग का जन समर्थन।वो युवा वर्ग जिसके बारे मे ये कयास लगाऐ जाते रहें है अब तक कि ये युवा तो पथभ्रष्ट हैं,सेक्स,कैरियर,बेरोजगारी आदि तमाम चीजों मे उलझा है।वो युवा ना सिर्फ आगे आया बल्कि उसके आगे आकर विरोध करने से सरकार के हाथ पाव फूल गए।लेकिन अन्ना को मिल रहे जन समर्थन से एक बात तो साफ हो गयी है।कि देश के हर नागरिक मे भ्रष्ट्राचार को लेकर एक आग है।और उसका प्रकटीकरण इस रूप में परिणित हुआ।अन्ना के बेदाग व्यक्तित्व के कारण ही लोग अन्ना के झंडे के नीचे अपने अपने विरोध दर्ज कराने का साहस कर सके।लोक पाल बिल को लेकर सुझाव 1967 में ही प्राशासनिक सुधार आयोग की ओर से दिया गया था। और लोकसभा ने इसे 1969 में पारित भी कर दिया था।लेकिन उसके बाद भी ये कानून नही बना।उसके बाद ऐसा नही था कि प्रयास नही किए गए।कुल छोटे बडे 14 प्रयास किए गए।लेकिन सभी बेमाने,जो कानून लोगो का हक है।उन्हे अब तक नही दिया गया।कोई ना कोई बहाना बनाया जाता रहा।आज जब कि इतने बडे बडे घोटाले भ्रष्टाचार उजागर है।उस समय मे ये आन्दोंलन एक महत्वपूर्ण आन्दोंलन है।और समाजसेवी गांधीवादी विचारक अन्ना हजारे निश्चय ही आज के युग के गांधी है।जिन्होंने निस्वार्थ इतना बडा आन्दोलन खडा किया।वैसे तो इस आंदोलन से जुडे और लोग भी इस सफलता के अधिकारी है लेकिन अगर अन्ना इस आन्दोंलन में ना होतें तो तस्वीर ये ना होती।सारा का सारा श्रेय अन्ना हजारे को है लेकिन अभी ये आंदोलन सफल नही हुआ है,अभी तो शुरूआत थी।आगे भविष्य ने अपने गर्त में क्या छुपा रखा है किसी को नही पता होता।अब इंतजार है कि लोक पाल बिल कानून बने,जिसमे भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए निष्पक्ष व पारदर्शी जबाबदेही तय है।हमारे देश के नौकरशाहों के भ्रष्टाचार से पूरा देश हलकान है,और सभी इस बदलाव के लिए एक मंच है।लेकिन अब जब अन्ना का अनशन खत्म और अन्ना का इन्तजार शरू हुआ।तो चंद स्वार्थी कूटनीतिज्ञों की मंशा भी नजर मे आ रही है।ये गाहे बगाहे तमाम पत्र पत्रिकाओं व पोर्टलों के माध्यम से अपनी मंशा व संभावना अपने अपने तर्को के आधार सुना रहे है।लेकिन फिर भी इनकी आवाज कही नही सुनाई दे रही क्योकि ये माहौल अन्ना मय है।और वास्तव में अन्ना हजारे आज के महात्मा गांधी है।ना कोई हिंसा,ना कोई हिंसा की बात और बात भी केवल अपने हक की,और अपने हक की लडाई के 5 दिन मे ही सरकार की सांसे फूला दी।खैर ये समय तो वास्तव मे बदलाव का है।सच में विकास के बारें मे सोचने के लिए ही ये समय है।और एक मंच तले अपनी आवाज को उठाने का समय है।अन्ना के साथ कौन नही खडा है।हर आमोंखास मीडिया युवा सभी अन्ना के साथ खडे है। हमे अपने हक को मजबूत करने के एक मंच पर इसी तरह खडे रहना होगा।क्योंकि मुझे लगता है,शायद ये शुरूवात है,अभी और सर्घष है जिसे पार करना है।
(रवि शंकर मौर्य पत्रकारिता से जुडें है, ये 2006 में हिन्दी से परास्नातक व 2009 में पत्रकारिता से परास्नातक की पढाई पूरी कर पत्रकारिता के पेशे से जुडे।इन्होने दूरर्दशन व जी न्यूज से ट्रेनिंग के बाद खोज इंडिया न्यूज में बतौर प्रोडूसर काम किया।इसके बाद इन्होने राजस्थान के कोटा शहर में दैनिक नवज्योति व दैनिक भास्कर के लिए रिर्पोटर के तौर पर काम किया है। लेखक का समाज व मीडिया के तमाम विषयों पर लेखन रहा है। लेखक से ravism.mj@gmail.com मेल आई डी के जरिऐं सम्पर्क किया जा सकता है। )
http://www.mediamanch.com/Mediamanch/Site/LCatevar.php?Nid=242
Journalism is a river of challenge.where u never stop confronting the tough times ahead . In jornalist's life every day is a ACID test .....
Popular Posts
-
पत्रकारिता के माएने बदल चुके है,ये बात अक्सर सुनने को मिलती है।जब कभी पत्रकारिता के महारथियों से आज की पत्रकारिता के विषय में पूछा जाता है।त...
-
(र वि शंकर मौर्य ) हमारे देश मे तकरीबन 20 से ज्यादा भाषाऐं बोली जाती है।कई संस्कृतियां यहां पनपी पोषित और पल्लिवत हुयी।कई बोलियों ने भाषाओं ...